Friday, 24 October 2008
इस मर्ज की दवा क्या...? मानवाधिकार हनन
भारतीय संविधान में वर्णित मूलभूत अधिकारों की सूची में सर्वोपरि है मानवाधिकार मानव जाति के साथ पशुतुल्य व्यवहार करना मानवाधिकार हनन ·हलाता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण उड़ीसा, असम, जम्मू-कश्मीर और महाराष्टï्र में देखने को मिल रहा है। उड़ीसा में माओवादी संगठनों ने धर्मान्तरण ·े मुद्दे ·को इतना तूल दिया की ईसाइयों व हिंंदू संगठनों में ट·राव ·ी स्थिति पैदा हो गई है। स्थिति यह है कीईवहां सांप्रदायिक ता ·की आग भड़·ती जा रही है और हिंसा रू·ने ·ा नाम नहीं ले रही है। वहीं ·ुछ समय पहले असम में बिहार राज्य गरीब मजदूरों को ढूंढ-ढूंढ कर खदेड़ा गया। उनका कसूर सिर्फ यह था की वह आर्थिक रूप से पिछड़े राज्य के निवासी हैं, जहां उन्हें जीविकोपर्जन के पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं हो पाते। इसलिए वे काम करने के लिए दूसरे राज्यों में आसरा ले रहे हैं। महाराष्टï्र में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है। क्षेत्रवाद के नाम पर बिहार के लोगों के साथ दुव्र्यवहार किया गया। जगह-जगह लोगों को मारा-पीटा गया, जिससे लोग अपना-अपना व्यवसाय और नौ·री छोड़ बिहार जाने ·ो मजबूर हुए।हमारा ·ानून और संविधान यह ·हता है ·की भारत का नागरि· होने के नाते उनको अधिकर प्राप्त है ·ि वे देश में ·हीं भी जा·र रह स·ते हैं, काम कर सकते हैं। तब उनके साथ मारपीट करके राज्य से बाहर निकालना उनके मानव अधिकार का हनन ही तो है। दूसरी तरफ जम्मू kश्मीर में अमरनाथ भूमि मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन के दौरान कितने ही नागरिक मारे गए। कहीं धर्म तो कहीं संप्रदाय के नाम पर भोलीभाली जनता को का गुमराह करके हिंसा को बढ़ावा देना मानवाधि·ार ·का उल्लंघन क रना है। आखिरकार इन हिंसात्मक गतिविधियों ·का शिकार तो आम जनता ही बनती है। जहां एक तरफ पुलिस जानवरों ·की तरफ उन पर डंडे बरसाती है वहीं दूसरी तरफ प्रशासन उनको अराजक तत्वों की संज्ञा देकर ·कारावास देता है। जबकी वास्तवि· दोषी वे संगठन, वे समुदाय हैं जो धर्म तथा संप्रदाय आदि मुद्दों पर जनता की भावनाओं को आहत ·करते हैं जिससे आक्रोश में आ·र वे ऐसे कार्य करते हैं। ऐसा नहीं है किस केवल भारत में ही इस तरह के मामले देखने में आ रहे हैं। बल्·ि दुनिया ·े अने· देशों में इस तरह ·े ·ई मामले देखे जा स·ते हैं। अभी हाल ही में राष्टï्र संघ ने बर्मा में मानवाधि·ार हनन ·े मामलेमें गंभीर रिपोर्ट जारी ·ी। इस रिपोर्ट में बताया गया ·ि बर्मा में ·म से ·म 19,00 राजनीति· ·ैदी हैं। इसमें सबसे चर्चित ·ैदी नोबल पुरस्·ार विजेता और नेशनल लीग फॉर डेमो·े्रसी ·ी नेता आंग सान सू ची है। जिन·ो पिछले 12 वर्षों से नजरबंद ·िया गया है। रिपोर्ट के अनुसार बर्मा के अधिकतर राजनीति कई कैदियो को बेहद खराब स्थितियों में जेल में बंद रखा गया है। उदाहरण के तौर पर लोकतंत्र समर्थक छात्र संगठन 88 जेनरेशन के सदस्य पाव ऊ टून को लें। खबर है की जेल के दौरान उनकी आंख में बुरी तरह संक्रमण फैलने पर भी उन्हें चिकित्सकीय सहायता नहीं दी जा रही है। वहीं चीन के संदर्भ में एमनेस्टी ·की रिपोर्ट दर्शाती है की वर्ष 2007 में वहां 470 लोगों को मौत की सजा दी गई। यहां तिब्बतियों की निर्मम हत्या की गई। जो दर्शाता है की यहां किस प्रकार मानवाधिकार हनन हो रहा है। पिछले ·कुछ दिनों से उड़ीसा, जम्मू-·श्मीर, असम, महाराष्ट्र में हो रहे घटनाक्रम से भारत में मानवाधिकार हनन का मामला देश-विदेश में चर्चा का विषय बना हुआ है। ईसाइयों के सर्वोच्च धर्मगुरू पोप बेनेडिक्ट ने उड़ीसा में हिंदूओं और ईसाइयों के बीच जारी हिंसा की घोर भत्र्सना की । अभी हाल ही में यूएनएससीआर ने की स्थिति पर खेद प्रकट करते हुए बयान जारी किया की यह गैर-जरूरी और गैर-जिम्मेदाराना कार्य है। आतंक्वादी वादी निर्दोष औरतों और बच्चों को बंधक बना रहे हैं। इनकी रक्षा के लिए प्रशासन के प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। वहीं संयुक्त राष्टï्र मानवाधिकार उच्चायोग ने भी भारत से संगठित होने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का सम्मान करने की बात कही है और सुझाव दिया किस प्रदर्शन नियंत्रित करने में मानवाधिकार के अंतरराष्ट्रीय सिद्घांतों का पालन करें। परंतु प्रशासन की समस्या है एक तरफ तो माओवादियों से निपटना है और दूसरे देश में धर्मनिरपेक्ष किस छवि को बचाए भी रखना है। इस संदर्भ में गृह मंत्रालय ·के ए· वरिष्ठ अधिका री ·के अनुसार 'उत्तर भारत के एक हिस्से यानी जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी हिन्दुस्तान के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। ऐसे में देश के पूर्वी हिस्से से अब माओवादियों की चाल से हिन्दू व ईसाई समुदाय खुलकर सामने आ गए हैं। उड़ीसा में धर्मांतरण के मुद्दे पर ईसाइयों व हिंदू संगठनों में टकराव नई बात नहीं है, लेकिन बलवे तक हालात पहुंचने में माओवादियों का ही हाथ है। समस्या यह है किस राष्ट्रीय य स्तर पर तो केन्द्र अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकता । इसके अलावा अल्पसंख्यक व मानवाधिकार हनन के मुद्दे पर सरका र को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी नीचा दिखने का भय सता रहा है। अभी हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने कहा किस कांगो में यौन शोषण और दुर्व्यवहार में शामिल कुछ भारतीय शांति सैनिको के खिलाफ भारतीय कानूनों के अनुसार कड़ी से कड़ी अनुशासनात्मक कार्यवाही होनी चाहिए। उन्होंने कहा की संयुक्त राष्ट्र की आंतरिक जांच में कांगो में संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान में शामिल कुछ भारतीय शांति सैनिको के यौन शोषण और दुर्व्यवहार में शामिल होने के प्रमाण मिलने से गहरा धक्का लगा है। उन्होंने कड़े शब्दों में दोहराया, ''इस तरह का व्यवहार पूर्णत: अस्वीकार्य है। जो भी लोग इस मामले में शामिल पाए जाएं, उनके खिलाफ भारतीय कानून के अनुसार कड़ी से कड़ी कार्य वाई की जानी चाहिए। भारतीय सैनिको पर लगाए गए आरोपों की विस्तृत और गहन जांच की जानी चाहिए। आरोपों के सही पाए जाने पर दोषियों कड़े दंड दिए जाए। ंजिससे अन्य लोगों को उदाहरण मिल सके ।अंतरराष्टï्रीय स्तर पर मानवाधिकार हनन मुद्दे पर चर्चा का विषय बन चुके हमारे देश में जल्द ही इस मामले पर सचेत होने की आवश्यकता है। क्योंकी मानवाधिकार हनन में उत्तर प्रदेश पहले नंबर पर है और राष्टरीय राजधानी दिल्ली दूसरे नंबर पर है। देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने में सर्वाधि· सहाय· राज्यों में मानवाधिकरो के हनन के इतने लंबे आंकडे दर्शाते हैं की देश में मानवाधिकार उल्लंघन की क्या स्थिति है। हालांकी हमारे देश में मानवअधिकारों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राज्य स्तर पर राज्य मानवाधिकार आयोग की स्थापना की गई है। परंतु इस आयोग को विशेष अधिकार प्राप्त नहीं होने के कारण तथा सरकार व प्रशासन का सामुहिक सहयोग न मिलने के कारण का रगर साबित नहीं हो पा रहा है। अत: देश की वर्तमान स्थिति को देखते हुए आवश्यकता है की राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राज्य मानवाधिकार आयोग को सशक्त किया जाए।
Wednesday, 8 October 2008
शुभकामना
कलम क्रांति ब्लॉग के माध्यम से मैं हिंदुस्तान के लोगों के साथ अपने विचारों को बांटना चाहती हूँ। मेरे इस विचार में कोई त्रुटी हो तो आप सबके विचारों का स्वागत हैं।
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