Saturday 1 November 2008

दीप जला कर दीपावली बनाओ बचपन जलाकर न


भारत में बच्चों को देश का भविष्य कहा जाता है और कहा जाता है की अगर भारत को सुनहरे भविष्य की तरफ देखना है, तो हमें वर्तमान में इन बच्चों को सहेजकर रखना होगा। इन बच्चों को न सिर्फ बेहतर स्वास्थ्य-शिक्षा सुविधाएं मुहैया करनी होगी, बल्कि उन्हें एक जिम्मेदार नागरिक बनाने के लिए प्रशिक्षित भी करना होगा। अगर वर्तमान भारत को देखेंगे की इस देश में सबसे ज्यादा उपेक्षित बच्चे ही होते हैं। आज देश में लाखों बच्चे बाल मजदूरी करने को मजबूर हैं। इस मामले में पटाखा फैक्ट्री इन बाल मजदूरों के लिए अभिशाप बनकर सामने आई है। देश भर की विभिन्न पटाखा फैक्ट्रियों में एक लाख से ज्यादा बच्चे बाल मजदूरी कर रहे हैं। जिनका जीवन आतिशबाजी बनकर रह गया है। जिस तरह से पटाखे जलते हैं उसी प्रकार से पटाखा फैक्ट्रियों में होने वाली दुर्घटनाओं के दौरान मासूम बच्चों का शरीर भी जलता है सरकार और प्रशासन की लापरवाही कई बार मिलीभगत के चलते इस बाल मजदूरी पर अंकुश नहीं लग पाया है। इन सबके अलावा ऐसी बाल मजदूरी के लिए सबसे ज्यादा दोषी वह लोग हैं जो जानबूझkर ऐसे पटाखों का इस्तेमाल करते हैं जिनके निर्माण में बाल मजदूरी को बढ़ावा दिया जाता है। दीपावली हिन्दुओं का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। इस त्योहार में सभी उम्र वर्ग के लोगों द्वारा खुशी जाहिर करने का पटाखा सबसे प्रचलित और आकर्षक माध्यम है। यही कारण है की इस दौरान अरबों रुपये का बिजनेस केवल पटाखों के माध्यम से किया जाता है। पटाखा के काम में जहां कई बड़ी कम्पनिया लगी हुई हैं। वहीं हर छोटे-बड़े शहरों में छोटे स्तर पर स्थानीय कम्पनिया भी इस कार्य से जुड़ी हुई हैं। इन कंम्पनियों का कोई सरकारी रिकॉर्ड नहीं होता है। तथा ये कम्पनिया समय विशेष के हिसाब से कारोबार को शुरू करती है और थोड़े अंतराल के बाद बंद कर देती है। ऐसी कम्पनिया में सबसे ज्यादा बाल मजदूरी होती है। इन छोटी कम्पनिया की स्थानीय प्रशासन के साथ सांठ गांठ होती है। जिस कारण न तो अवैध पटाखा निर्माण पर रोक लग पाती है और न ही इन फैक्ट्रियों पर काम करने वाले बाल मजदूरी पर । बचपन बचाओ आंदोलन के तहत वर्ष 1993 से हमने एक अभियान चलाया है जिसका नारा है दीप जला कर दीपावली बनाओ बचपन जलाकर नहीं। एक लाख बच्चों का जीवन जलाकर दीपावली मनाना हमारी सभ्यता, संस्कृति , परंपरा, तथा लोक हित के खिलाफ है। पटाखा फैक्ट्री में काम करने वाले बच्चों के साथ एक बात और है जो बच्चे इन फैक्ट्रियों में काम नहीं कर रहे हैं। उनके शरीर पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। पोटाशियम, एलुमिनियम जैसे कई जहरिले रसायनों का दुष्प्रभाव इन बच्चों के शरीर पर पड़ता है। इससे बच्चे किसी एक रोज हुई दुर्घटना के ज्यादा रोज-रोज होनेवाले कुप्रभाव से मर रहे हैं। ऐसे में कह सकते हैं की इन बच्चों के साथ हर रोज दुर्घटना हो रही है। सरकार , प्रशासन और जनता सभी मूक दर्शक बनकर देख रहे हैं। मेरे विचार से हम सभी को सामूहिक प्रयास के तहत इस बाल मजदूरी को काफ़ी हद तक ·कम कर सकते हैं।

विचार : कैलाश सत्यार्थी संस्थापक , बचपन बचाओ आंदोलन

No comments: