Saturday 1 November 2008

किसी की दिवाली किसी का दिवाला

दीपावली का त्योहार आते ही घर-घर में खुशी और आनंद ·ा माहौल छा जाता है। यह ए· ऐसा त्योहार है जिसमें निम्न वर्ग से ले·र उच्च वर्ग सभी सामथ्र्य अनुसार अपने घर ·ो प्र·ाशमय ·र·े लक्ष्मी माता ·ो प्रसन्न ·रना चाहते हैं ता·ि उन·े घर में धन-धान्य समृद्घि ·ी बरसात हो। इस खुशी में चार-चांद लगाने ·े लिए बच्चे हों या बड़े रंग बिरंगी रोशनी फैलाने वाले पटाखे रंग बिरंगी आतिशाबाजी जलाते हैं। इन पटाखों और दीपों ·ी रोशनी में वे अपने जीवन ·ो प्र·ाशमय ·र देना चाहते हैं। पर क्या आप जानते हैं ·ि इतने लोगों ·े जीवन में धूम मचाने वाले व रोशनी फैलाने वाले इन पटाखों ·ो बनाने ·े लिए लाखों बच्चों ·ा जीवन अंध·ार ·ी गर्त में समा जाता है। तब जा·र रोशन हो पाती है हमारी दीपावली। जी हां हम बात ·र रहे हैं उन लाखों मासूमों ·ी जो दो जून ·ी रोटी ·े लिए इन पटाखा फैक्ट्रियों में अपना बचपन खोने ·ो मजबूर हैं। भारत में ·ई शहर हैं जो पटाखे बनाने वाले ·ारखानों से भरे पड़े हैं और इन ·ारखानों ·े श्रमि· ज़्यादातर मासूम बच्चे हैं यानि ·ी बाल श्रमि·। घर में गरीबी ·े चलते यह बच्चे बाल मजदूरी ·े शि·ार हैं। इन पटाखों ·ो बनाते समय ये बच्चे अपनी आखें खो बैठते हैं, अपाहिज हो जाते हैं या पटाखों ·े मसालों से हुई बीमारियों से इन·ी मृत्यु त· भी हो जाती है। इतना ही नहीं इन बच्चों ·ो इन·े ·ाम ·ा पूरा मेहनताना भी नहीं मिल पाता। गौतरतलब है ·ि यहां प्रत्ये· बच्चे ·ो 100 पटाखे बनाने पर 10 से 20 रुपये मिलते हैं। जैसा ·ि यह जोखिम भरा ·ाम है, इसलिए दुर्घटना ·ी आशं·ा सदैव बनी रहती है। परंतु इतने पर भी इन बच्चों ·ी समस्या से ·िसी ·ो ·ोई सरो·ार नहीं। जैसा ·ि अभी हाल में देखने ·ो मिला, राजस्थान ·े भरतपुर जिले ·े डीग ·स्बे में ए· अवैध पटाखा फैक्टरी में हुए विस्फोट से 27 लोगों ·ी मौत हुई है और 20 लोग घायल हुए हैं। मरने वालों में ए· दर्जन बच्चे भी शामिल हैं। राज्य सर·ार ने भरतपुर ·े संभागीय आयुक्त से इस हादसे ·ी प्रशासनि· जांच ·राने और मृत·ों ·े परिजनों ·ो ए·-ए· लाख रुपए तथा गंभीर रूप से घायलों ·ो 25-25 हजार रुपए ·ी सहायता राशि देने ·ा फैसला ·िया। सर·ारी आं·ड़ों ·े अनुसार मरने वाली ·ी बताई गई संख्या में ए· दर्जन बच्चों ·ा होना ही स्थिति ·ो जगजाहिर ·रने ·े लिए ·ाफी है। अब इन·ो ·ितनी सहायता राशि मिल पाएगी और ·ितने बच्चों ·ा जीवन बच स·ेगा यह अपने आप में ए· वि·ट सवाल है। वर्ष 1991 में दिए गए ए· फैसले में अदालत ने ·ानून और जमीनी सच्चाई में सामंजस्य स्थापित ·रने ·ी ·ोशिश ·ी थी। न्यायालय ने ·ुछ निर्देश जारी ·िए थे जिनमें ·हा गया था ·ि छोटे बच्चों ·ो ·िस तरी·े ·े ·ाम दिए जा स·ते हैं। बच्चों ·ो पै·िंग ·े ·ाम में लगाया जा स·ता है पर यह ध्यान रखना जरूरी है ·ि उत्पादन वाले स्थान से उन्हें दूर रखा जाए। उन्हें ऐसी ·िसी जगह भी ·ाम पर नहीं लगाया जाना चाहिए जहां दुर्घटना ·ी आशं·ा बनती हो। साथ ही यह भी निर्देश जारी ·िए गए थे ·ि ·ाम ·े लिए बच्चों ·ो ·ितना न्यूनतम भुगतान ·िया जाए। अदालत ने सुझाव दिया था ·ि ·म से ·म वयस्·ों ·ो ·िए जा रहे भुगतान ·ा 60 फीसदी तो बच्चों ·ो दिया ही जाना चाहिए। साथ ही राज्य सर·ारों से यह भी ·हा गया ·ि अगर मुम·िन हो स·े तो वे इससे अधि· भुगतान भी सुनिश्चित ·रें। अदालत ने यह भी ·हा था ·ि सर·ार ·ो यह भी सुनिश्चित ·रना चाहिए ·ि हर बच्चे ·े लिए 50,000 रुपये त· ·ा बीमा ·राया जाए, जिस·े प्रीमियम भुगतान ·ी जिम्मेवारी नियोक्ता ·ी हो। शिक्षा, चि·ित्स·ीय सुविधा से जुड़े सुझाव भी दिए गए थे। इन सभी आदेशों और निर्देशों ·ो याद ·रने ·ा म·सद बस यही जताना है ·ि इन्हें अब भूला जा चु·ा है। इन पटाखा बनाने वाली फैक्ट्रियों में खुलेआम नियमों ·ा उल्लंघन हो रहा है, ले·िन देखने वाला ·ोई नहीं है। इन फैक्ट्रियों मेंं चौदह साल से भी ·म उम्र ·े बच्चे ·ार्य ·रते हैं। उन्हें फैक्ट्री प्रबंधन उचित मजदूरी भी नहीं देता है। फैक्ट्री प्रबंधन इन·ा बीमा तो क्या ·रवाएगा इन·ा रि·ार्ड त· नहीं रखता, जब·ि नियम अनुसार फैक्ट्री में ·ाम ·रने वाले प्रत्ये· मजदूर ·ा रि·ार्ड रखना जरूरी होता है। ए· दश· पहले त· बाल श्रम पर उच्चतम न्यायालय ·ी पैनी नजर हुआ ·रती थी और जोखिम भरे ·ामों में अगर बच्चों ·ो लगाया जाता था तो ·ड़ी ·ार्रवाई ·े लिए भी वह मुस्तैद रहा ·रता था। परंतु अब बाल श्रम ·ा गोरखधंधा ·म से ·म 25 क्षेत्रों में फैला हुआ है। पटाखा, स्लेट-चौ· ·ी खानें, शीशे, ·ालीन, दरी, हीरे ·ी नक्काशी, रत्न और रेशम उद्योगों में बच्चों ·ो लगाया जाना आम हो चु·ा है। बाल श्रम उन्मूलन ·े लिए उच्चतम न्यायालय ने अब त· जो आदेश जारी ·िए हैं अगर उन पर गौर ·िया जाए तो पता चलेगा ·ि उनमें से ज्यादातर ·ो या तो भुला दिया गया है या उन पर ·ोई ·ार्रवाई नहीं ·ी गई। त·रीबन दो दश· पहले सर्वोच्च न्यायालय ने बंधुआ मजदूरों ·े ·ई परिवारों ·ो रिहा ·िया था, जिनमें बच्चे भी शामिल थे। बाद में बाल श्रम ·ी समस्या ·ो उभारते हुए तमाम याचि·ाएं दायर ·ी गईं। उन·े बाद अदालत ने प्रत्ये· क्षेत्र में हालात ·ा जायजा लेने ·े लिए समितियां गठित ·ीं। ले·िन, बच्चों ·े ह· में दिए गए इन आदेशों ·ो पूरा देश भुला चु·ा है क्यों·ि अदालत या ·िसी दूसरे विभाग ने इन पर ·ोई ·ार्रवाई ही नहीं ·ी।आज दीपावली ·े इस अवसर पर जब·ि पूरा देश खुशियां मनाने में मशगूल है तो क्या इन मासूमों ·ो हमारी तरफ दीपावली मनाने ·ा ह· नहीं है? क्यों दीपावली इन·े लिए सिर्फ ·ाम ·ा भारी बोझ है। क्या इन बच्चों ·ा बचपन हमें यूं ही अपने आनन्द ·े लिए उजडऩे देना चाहिए?आखिर ये भी तो हमारे समाज ·ा ही हिस्सा हैं आखिर इन·ी समस्या से ·ौन सरो·ार रखेगा? हमारे देश में सर·ारी उदासीनता और शक्तिशाली निहित स्वार्थी तत्वों ने इस समस्या ·ो अत्यधि· जटिल बना दिया है। जब·ि संविधान में भी इस बात ·ा स्पष्ट उल्लेख है ·ि 14 साल से ·म उम्र ·े बच्चों ·ो ·ाम पर लगाना ·ानूनी अपराध है। ऐसे में यदि समाज ·ा प्रत्ये· वर्ग, प्रत्ये· व्यक्ति इन बच्चों ·े जीवन ·ो अंध·ार ·ी गर्त से उजाले में लाने ·े लिए छोटा प्रयास भी ·रे तो शायद हमारी सर·ार और न्यायपालि·ा भी चेत जाए।

1 comment:

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

मासूमों को खतरनाक कामों से दूर िकए िबना िवकास नहीं हो सकता । मानवािधकारों के मुतािबक भी बच्चों को पढने और खेलने की उम्र में काम पर नहीं लगाया जाना चािहए । आपने बहुत अच्छा िलखा है । मैने अपने ब्लाग पर एक किवता िलखी है । समय हो तो पढें और राय भी दें-

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