Thursday 19 February 2009

प्रेम की अभिव्यक्ति का ये कैसा स्वरूप

पाश्चात्य संस्कृति की देन कहा जाने वाला वेलेन्टाइन डे आज भारत में भी काफी लोकप्रिय हो चला है। इस दिन की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इन दिन को मनाया जाना आज एक राष्ट्रीय मुद्दा बन गया है। जहां कुछ संगठन इस दिन को मनाए जाने की परंपरा को भारतीय संस्कृति पर आघात मानते हुए विरोध कर रहे हैं, वहीं कुछ लोग इस दिन को मनाए जाने में किसी तरह की संस्कृति के साथ खिलावड नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि भले ही वेलेन्टाइन डे पाश्चात्य संस्कृति की देन है लेकिन इसके औचित्य पर सवाल उठाना सरासर बददिमागी है। इसका प्रमाण अभी पिछले दिनों देखने को मिला जब श्री राम सेना संगठन ने इस दिन को मनाने का कडा विरोध किया तो महाराष्ट्र में नवनिर्मित महिला संगठन ने तो जैसे श्री राम सेना के खिलाफ जंग छेड दी। इस विरोध में इन संगठनों के नेताओं के एक आह्वान पर हजारों की संख्या में लोग एकजुट हो गए और न जाने कितने दस्ते बन गए। अगर इन नेताओं के आह्वान में इतना ही दम है, तो इन नेताओं को इन दस्तों का उपयोग समाज में फैली कुरीतियों को भगाने के लिए करना चाहिए, जो वर्षों से हमारे समाज में व्याप्त है। इसमें भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा, जाति प्रथा, शिक्षा, असमानता आदि है। अगर ये दस्ते खुद को इन रचनात्मक कार्यों में लगाएं तो निश्चित ही आदर्श समाज की मजबूत नींव रखी जा सकती है।वेलेन्टाइन डे को मनाना कितना उचित है या अनुचित, अथवा इस दिन को मनाने से भारतीय संस्कृति दागदार हो रही है या नहीं यह चिंतन हम संस्कृति के तथाकथित ठेकेदारों पर छोडते हैं। क्योंकि इस बहस का कोई अंत प्रतीत नहीं होता। यदि इस दिन के औचित्य तथा इतनी तेजी से बढती लोकप्रियता के मूल में जाने की कोशिश की जाए तो शायद इस विवाद को कोई समाधान संभव हो पाए। लेकिन सबसे अहम बात यह है कि पिछले 10 वर्षों में जिस प्रकार वेलेन्टाइन डे का प्रचार-प्रसार हुआ है उसका सबसे प्रमुख कारण बाजार रहा है। चॉकलेट डे, किस डे, रोज डे, हग डे, फ्रेन्डशिप डे आदि दिवस कहीं न कहीं इस बाजारी प्रचार प्रसार की ही देन है। इन दिनों को मनाए जाने की रीति अभी हाल फिलहाल के कुछ वर्षों तक ज्यादा अस्तित्व में नहीं थी। इसके अलावा कुछ ऐसे भी दिवस हैं, जो धीरे-धीरे अपना प्रसार कर रहे हैं, जिनमें मदर्स डे, फादर्स डे और डॉटर्स डे प्रमुख हैं। इन दिवसों को भी बाजार का साथ मिलेगा और मीडिया के माध्यम से इस प्रकार पेश किया जाएगा, जिससे लोग अपने माता-पिता या बेटा-बेटी के साथ प्रेम को दर्शाने के लिए इन दिवसों का इंतजार करेंगे। जबकि हम सभी जानते हैं कि प्रेम को दर्शाने के लिए कोई भी इन दिवसों पर निर्भर नहीं रहता है, क्योंकि ऐसे प्रेम में स्थायित्व की संभावना कम ही रहती है। हाल की घटना में चांद और फिजा की घटना को लिया जा सकता है। जिसका परिणाम भी सभी के सामने है। अगर सभ्यता और संस्कृति के ठेकेदार उसकी रक्षा के प्रति इतने हीं गंभीर हैं, तो सबसे पहले उन्हें अपने घर के लडक़े-लडक़ियों पर अंकुश लगाना चाहिए और समाज में व्याप कुरीतियों को को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। संस्कृति बहती नदी के समान होती है, जिसके बहाव को रोकने पर उसमें सड़न पैदा होने की संभावना बढ ज़ाती है।स्थिति यह है कि आज यदि प्रेमी के पास केवल एक वक्त के भोजन खाने जितने पैसे हैं तो वह खाना छोड देगा लेकिन प्रेमिका के लिए उपहार अवश्य लेकर जाएगा। उधर प्रेमिकाएं भी उपहार के लिए कुछ समय पहले से ही पैसे इकट्ठे करना शुरु कर देती है। इतना ही नहीं अभी कुछ दिन पहले ज्वैलरी डे मनाया गया। इस दिन प्रेमी-प्रेमिकाओं ने एक दूसरे को तोहफे के रूप में गहने देकर इस दिवस को भी प्रचलित करने का प्रयास शुरू कर दिया। जिस प्रकार प्यार का इजहार करने के लिए चॉकलेट डे, रोज डे, ज्वैलरी डे वेलेन्टाइन डे के बहाने महंगे उपहार देने की परंपरा प्रचलित होती जा रही है। इससे स्पष्ट है कि इस दिनों का सीधा संबंध बाजार से है। एक सूचना के अनुसार वेलेन्टाइन डे के उपलक्ष्य पर एक व्यक्ति ने अपनी प्रेमिका के लिए 45 हजार रुपए का फूलों का बूके तैयार करवाया है।यहां प्रेमिका को उपहार देना या वेलेन्टाइन डे मनाने को हाइलाइट न करके तोहफे को बडे स्तर पर प्रचारित किया जा रहा है। हो सकता है इससे प्रेरित होकर दूसरे लोग भी सामने आएं जो उससे भी महंगा बुके खरीद कर प्रचार की इस होड में अव्वल आने का प्रयास करे। ऐसे में इन दिवसों विशेष का संबंघ किसी सभ्यता संस्कृति से न होकर सीधा बाजार की संस्कृति से दिख रहा है।प्रेम की भावना का इजहार किसी भी संस्कृति पर आघात नहीं हो सकता परंतु जिस प्रकार प्रेम के नाम पर उपहारों से भरे बाजारों के द्वारा इस दिन को आकर्षक तथा महत्वपूर्ण बनाने की कोशिश की जा रही है। इसका संस्कृति से कहीं कोई लेना देना नहीं है। लेकिन जिस भाव के लिए यह दिन मनाया जाता है उस दिन का महत्व ही भटका-सा प्रतीत होता है। जिस तरह से बाजारों में महंगे-महंगे तोहफे भरे पडे हैं और लोगों में होड लगी है कि कौन कितना महंगा और आकर्षक तोहफा देता है, वहीं प्रेमिकाएं भी अधिक से अधिक आकर्षक व महंगे उपहार की उम्मीद लगाए रहती हैं। यह तो सरासर प्रेम के मूल्यों पर बाजार का प्रभाव है।

1 comment:

अनिल कान्त said...

आपने बिल्कुल सही कहा ...और भी गम है ज़माने में मोहब्बत के सिवा ...पर ना ही ये संगठन समझना चाहते और ना ही ज्यादातर लोग .....

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति