Thursday 19 February 2009

कहां लगाएं सुरक्षा की गुहार?

रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना बलात्कार, कानून की भाषा में एक बड़ा अपराध ही नहीं बल्कि समाज के भी रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना है। लेकिन बात जब गैंग रेप की हो, तो इसकी भयावहता का अंदाजा लगाना भी मुश्किल हो जाता है। नोएडा में एमबीए की छात्रा से गैंग रेप की घटना से एक बार फिर राजधानी व इससे सटे उपनगरों में महिलाओं की सुरक्षा को आशंका के घेरे में ला कर खडा कर दिया है। उक्त घटना में छात्रा अपने सहपाठी युवक के साथ सेक्टर-38 ए स्थित मॉल 'ग्र्रेट इंडिया प्लेस' आई थी। शॉपिंग करने के बाद दोनों अपनी वैगनआर कार से घर जाने के लिए निकले। वहां से कुछ ही दूरी पर शाम के समय में तीन-चार बाइकों पर सवार युवकों ने उन्हें अगवा कर लिया और सुनसान स्थान पर ले जाकर लडक़ी का सामूहिक बलात्कार किया और लडक़े की जमकर पिटाई की। पुलिस द्वारा कराई गई मेडिकल जांच में छात्रा के साथ बलात्कार की पुष्टि के बाद सक्रियता दिखाते हुए सेक्टर-58 स्थित गढ़ी चौखंडी गांव में पुलिस की कई टीमों ने दबिश देकर कई आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। अब सवाल यह उठता है कि जब अपराधी शाम के समय सरेआम किसी की गाडी में घुसकर लडक़ी का सामूहिक बलात्कार कर देते हैं, तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट में चलने वाली मध्यम वर्गीय कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा का क्या हाल होगा। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित राजधानी के अस्पतालों में धडल्ले से हो रही भ्रूण हत्या व कम होने वाले लिंगानुपात को बढ़ाने के लिए भले ही लाडली जैसी महत्वाकांक्षी योजनाओं को लागू करने का काम कर रही हैं और पुलिस के आला अधिकारी राजधानी में महिला अपराध कम होने का दम भरते हैं, लेकिन राजधानी और एनसीआर में महिलाओं के साथ हो रही घटनाओं सरकार के बयानों की हवा निकाल रहे हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1971 से बलात्कार मामलों में 678 प्रतिशत बढाेतरी हुई है। ये आंकडे सरकार के द्वारा किए गए तरह-तरह के दावे-प्रतिदावे की हकीकत बयान करने के लिए काफी हैं। ये दावे सिर्फ हाथी के दिखाने वाले दांत ही साबित हो रहे हैं। राजधानी की मुख्यमंत्री चाहती हैं कि बालिकाओं और महिलाओं को स्वच्छंदता के साथ जीने का अधिकार मिले। उनके साथ छेड़छाड़ न हो और पारिवारिक माहौल व उनकी सोच में बदलाव आए। मगर पुलिस के नकारात्मक रवैये के कारण दिल्ली की महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। चाहे वह राह-बाजार हो, आधुनिक शॉपिंग मॉल्स हों, सिनेमा घर हों, बस हो या फिर स्कूल-कालेज। हर स्थान पर महिलाएं असुरक्षित हैं। यहां आए दिन महिलाओं के साथ छेड़छाड़, लूटपाट, बलात्कार, अगवा और हत्या जैसी घटनाएं घटित होती हैं। बावजूद इसके इनमें से अधिकांश छेड़छाड़ व चैन-झपटमारी की शिकायत दर्ज नहीं की जाती। यही वजह है कि दिल्ली देश के उन 35 शहरों में सबसे शीर्ष स्थान पर है जहां महिलाओं के साथ सर्वाधिक आपराधिक वारदातों को अंजाम दिया जाता है। यहां सबसे उल्लेखनीय बात यह भी है कि दिल्ली की मुख्यमंत्री ने भी अपने एक बयान में कहा है कि दिल्ली की महिलाएं थानों में भी सुरक्षित नहीं हैं। राजधानी में बढ़ते महिला अपराध को लेकर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों पर गौर करें तो यह स्वयं सिध्द हो जाता है कि दिल्ली महिला अपराध में न केवल शीर्ष स्थान पर है बल्कि यहां की महिलाएं और गर्भस्थ बालिका शिशु सुरक्षित नहीं है। क्योंकि यहां दहेज को लेकर ही शिशु को जन्म देने से पहले कई महिलाओं की हत्या कर दी जाती है। वर्ष 2005 व 2008 के आंकड़े बताते हैं कि प्रतिवर्ष यहां की करीब 27.1 प्रतिशत महिलाएं आपराधिक वारदातों का शिकार होती हैं, जोकि देश में होने वाली कुल आपराधिक घटनाओं का 14.1 प्रतिशत है। वर्ष 2005 में बलात्कार के 562 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि अगवा करने के 900, यौन शोषण के 197 और दहेज हत्या के 94 मामले दर्ज किए गए थे। ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार जनवरी 2008 तक इन घटनाओं में दो गुणा से भी अधिक वृध्दि हुई है। उपरोक्त सभी आकड़े इस बात को साबित करते हैं कि दिल्ली में महिलाएं कितनी सुरक्षित हैं? यहां गौर करने वाली बात यह है कि समस्या की बात तो सभी करते हैं पर क्या कारण है कि महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने में समाज, सरकार, पुलिस सभी नाकाम साबित हो रहे हैं। एक के बाद एक यौन शोषण, छेडछाड, बलात्कार के मामले हमारी पुलिस व्यवस्था व प्रशासन की पोल खोलती हैं। अब हालात यह हो गए हैं कि न केवल रात में बल्कि दिन में भी अपने परिजनों या मित्रों के साथ चलने में भी असुरक्षित हो गई हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि समय के साथ भले ही सब कुछ बदल गया हो, पर महिलाओं के प्रति पुरुषों की मानसिकता और क्रूरता का रवैया अभी तक नहीं बदला है। वर्षों से चली आ रही पुरूष मानसिकता को तो समय के साथ धीरे-धीरे ही बदला जा सकता है। यदि पुलिस और कानून की लचर व्यवस्था में सुधार करके अपराधियों पर शिंकजा कसा जाए तो यकीनन अपराधियों में भय व्याप्त होगा। इस घटना से डर जाने या इस पर सिर्फ विलाप करने की बजाय हमें इसके तीन बिंदुओं पर गंभीरता से विचार करना होगा। पहला बिंदु पुलिस का रवैया है। जिन पुलिसकर्मियों ने अभियुक्तों को पकड़ने की त्वरित कार्रवाई की, उनका काम सराहनीय है। लेकिन ऐसी खबरें भी आई हैं कि पीड़ित छात्र पहले सेक्टर-20 के पुलिस स्टेशन में गए थे, जहां से उन्हें सेक्टर-58 का मामला बता कर टरका दिया गया था। इतनी बड़ी घटना के बाद बदहवास उन पीड़ितों की मदद सेक्टर-20 की पुलिस ने खुद आगे बढ़ कर क्यों नहीं की, इस बात की जांच होनी चाहिए। जितना जरूरी बलात्कारियों को दंड देना है, उतना ही जरूरी उन पुलिसकर्मियों को दंडित करना भी है। पुलिस का महकमा अपने ये दोनों चेहरे एक साथ नहीं रख सकता। उसे यह मानना होगा कि यह मानसिकता भी परोक्ष रूप से बलात्कारियों में ऐसे दुस्साहस को हवा देती है। इसलिए पुलिस और प्रशासन को जनहित में यह बात सार्वजनिक करनी चाहिए कि उन कर्तव्य का उचित ढंग से पालन न करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई। दूसरा बिंदु अपने नौजवानों के बारे में हमारे समाज का मूल्यांकन का है। अब तक जो नौजवान इस कांड में पकड़े गए हैं, उनमें से एक बीबीए, एक बीसीए और एक बीएससी का छात्र है। इनके अलावा 2 हाई स्कूल में पढ़ रहे हैं। पिछले दिनों आतंकवादी गतिविधियों के लिए गिरफ्तार कुछ युवकों के बारे में यह जान कर हमारा समाज हतप्रभ रह गया था कि उनमें से कुछ उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे थे या प्रोफेशनल थे। तब सवाल उठाया गया था कि परिवार और समाज इन बच्चों की कैसी परवरिश कर रहे हैं। उसके बाद से बैंक डकैती और लूटपाट में भी ऐसे कई उच्च शिक्षित प्रोफेशनल पकड़े जा चुके हैं। इसलिए परवरिश का सवाल पीछे छूट गया है। अब इसकी पहचान भी जरूरी है कि जिन बुराइयों को लेकर हम सबसे ज्यादा उत्तेजित रहते हैं, उनमें से कितने ऐसे हैं जो इस बलात्कार से ज्यादा घातक हैं। तीसरा बिंदु यहां का वह ग्रामीण समाज है, जिसकी पंचायतें प्रेम करने के आरोप में अपने नौजवान बच्चों के टुकड़े-टुकड़े कर डालती हैं। क्योंकि इस बलात्कार के लिए गिरफ्तार ज्यादातर नौजवान एक ही गांव गढ़ी चौखंडी के हैं। निश्चित रूप से उस गांव के बुजुर्गों, वहां की पंचायतों और वहां की मांओं से भी यह जानना चाहिए कि इस बलात्कार के बारे में उनकी क्या राय है और वे क्या सजा तजवीज करते हैं। क्या वह गांव इतना शर्मसार होगा कि बचाव के लिए वहां का कोई शख्स खड़ा नहीं होगा? इन सभी पक्षों पर विचार करने का मतलब है आत्म निरीक्षण, क्योंकि नैतिकता उपदेश के माध्यम से नहीं थोपी जा सकती। एक अपराध और उसके लिए जिम्मेदार दोषियों की सजा से सिलसिला खत्म नहीं होता, यह जानना जरूरी है कि ऐसे अपराध करने वालों को भय क्यों नहीं लगता। अक्सर यह होता है कि कुछ ऊंचे तबके के युवक अपनी दौलत के बल पर ये अपराध करने से नहीं डरते। उन्हें लगता है कि पैसे के दम पर सारे मामले को रफा दफा कर दिया जाएगा। और ज्यादातर होता भी ऐसा ही है। पुलिस व कानून की लचर व्यवस्था को ढाल बनाकर अपराधी इन कुकृत को अंजाम देते हैं। इस तरह के मामलों में यदि पुलिस शीघ्र व सख्त कार्रवाई करे तो निश्चित रूप से अपराधियों के हौंसले पस्त होंगे।

5 comments:

अनिल कान्त said...

नैतिकता कहीं खो गई है ....आपकी लिखने की में दाद देता हूँ ...सच्चाई बयां की है आपने ...क़ानून अगर कठोर हो जाए और इस ओर ज्यादा ध्यान दिया जाए तो शायद हालत कुछ हलके हों

एक स्वतन्त्र नागरिक said...

this is really very serious matter. rape is such a trauma which affects not only the body but the mind, personality of the victim. whatever be the reasons but why a male member of the society has the right to do this type of heinous act.
rape is a major issue but nobody talks about the menace of eve teasing which is not only verbal but is on physical level as well. no girl can travel by public transport or on road without these activities. these activities are shameful for any so called civilized society. nobody takes these offences seriously. girls are taught to live with it by bearing the pain and ignoring the acts. we need very strict laws, prompt and stern action by the authorities including police and involvement of NGO's to take the appropriate action against the culprits of eve teasing and woman empowerment movements as well as social awareness against these acts.
i feel that curbing the menace of eve teasing with severity is the need of hour and it will also reduce the cases of rape.

अजय कुमार झा said...

sirf itnaa ki behad sanjeedaa batein bade hee prabhaavpurn tareeke se likhee hain aapne. likhtee rahein.

राहुल यादव said...

bahut khoob,,,,,

मीत said...

जब तक आम इंसान नहीं जागेगा तब तक यह चलता ही रहेगा...
खुद के घर की सफाई में अपने हाथ तो गंदे होंगे ही...इसीलिए कोई आगे नहीं आना चाहता...
मीत